श्री गुरु जम्भेश्वर चालीसा

श्री गुरु जम्भेश्वर चालीसा 

  ओउम नमों गुरुजम्भ्जी, चरण नवांऊ शीश | पर ब्रह्मपरमात्मा, पूर्णविश्वा बिश |
जय गुरु जम्भेश्वर जय गुरु दैया | सत चित आनन्द अलख अभेवा ||१||
लोहट घर अवतार धरया | माता हंसा लाड लडाया ||२||
सकल सुष्टि के तुम हो स्वामी | घट-घट व्यापक अन्तर्यामी ||३||
ब्रह्मा, विष्णु अरु महादेवा | ये सब करै आपकी सेवा ||४||
सुरनर मुनिजन ध्यान लगावै | अलख पुरुष थारो भेद न पावे ||५||
हाड, मांस,लोहू नहीं काया | आप ही ब्रहम आप ही माया ||६||
दस अवतार आप ही धारा | त्रिलोकन का संकट टारा ||७||
विक्रम कुल का रखिया मान | वंश पंवार भया प्रमाण ||८||
जोत निरंजन अटल सदाई | समराथल में आन समाई ||९||
तैतीस कोटि जीवों के तांई | प्रगटे आप कलयुग मांई ||१०||
लोहट जी को परचा दीना | जल बरसाय, कलश भर दीना ||११||
मायाधारी फौज बनाई | डाकुओं से सांड छुड़ाई ||१२||
दुदा रावजी राज गंवायो | पुन: राज गुरु जम्भ दिवायो ||१३||
तेजो जी का कोढ़ हर लीना | कवि कान्हा को पुत्र दीना ||१४||
भूआं तांत का मान बढ़ाया | ब्रहम तत्व का ज्ञान कराया ||१५||
सिकन्दर लोदी का गर्व मिटाया | सत उपदेश कर सत दरसाया ||१६||
तरड जाट बाजो अजमायो | ताज अभियान गुरु शरनै आयो ||१७||
मलेर कोटला गाय हनान्त | रीत बुरी का कर दिया अन्ता ||१८||
रावल जेतसिंह पेट का रोगी | जम्भ गुरु जी क्रिया निरोगी ||१९||
आक के आम लगाया स्वामी | अधर धार बरसाया पानी ||२०||
बिदे का अंहकार मिटाया | जल का गुरु जी दूध बणाया  ||२१||
लक्ष्मण पांडू का कारज साया | जैसलमेर का कर दिया राजा ||२२||
पूहला जी को स्वर्ग दिखाया | नौरंगी का भात भराया ||२३||
हासम कासम दरजी का जाया | लोदी की कैदी से मुक्त कराया ||२४||
कन्नोज पति सिद्योसंग आया | अलग-अलग गुरु भेद बताया ||२५||
महमद खान करी जीव की चरचा | तुरन्त गुरूजी दीन्हा परचा ||२६||
काजी मुल्ला सब चकराया | हाथी का गुरु भेड़ बनाया ||२७||
लोहा, पांगल ,लक्ष्मण सैंसा | खीयो ,भीयों ,रतना जैसा ||२८||
खेमनराय और सांगा राणा | मोती ,मेघ  ,महलू ,बलवाना  ||२९||
झाली राणी ,अतली उदा | रंधीर ,अहलू ,बीरा ,बीदा ||३०||
क्या योगी ,सन्यासी नाथा | सब सतगुरु का लीन्हा साथा ||३१||
उनत्तीस नेम का धर्म झलाया | ऋषि-मुनि बस के मन भया ||३२||
कहां लग महिमा बरणू थारी ,नेति-नेति कह वेद भी हारी ||३३||
भूत पिशाच दूर हो जावे , जो गुरु जम्भ की शरणे आवे ||३४||
अमावस हवन करै जो कोई , मन ,बुद्धी ,चित ,निर्मल होई ||३५||
जम्भेश्वर जपै नाम सवेरा ,रिध-सिध घर में करै बसेरा ||३६||
विष्णु जपै  होवे विश्नोई ,काल-जाल व्यापे नहीं कोई ||37||
जो कोई "पाहल" आपकी पावै ,जन्म -जन्म के पाप नसावै ||38||
नित नेम पढो जम्भ चालीसा ,धर्म निभाओ नव अरु बीसा ||३९||
"निर्मल " मन गुरु महिमा गावें ,गुरु जम्भेश्वर जी पार लंघावै ||४०||

                         ओउम नमों गुरु जम्भ जी ,तीन लोक सरताज
                          मै शरनै हूँ आप की ,रखियों मेरी लाज |

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