गुरु जाम्भोजी मानववादी लोक संत
गुरु जाम्भोजी 15वीं शताब्दी में (1451-1536ई.) मध्य भारत में कबीर और गुरु नानक के समकालीन निर्गुण भक्ति के मानववादी दृष्टिकोण के लोकसंत थे। जाम्भोजी ने तत्कालीन समाज में व्याप्त घोर आडंबर, कर्मकांड का विरोध किया और अपने अनुयायियों को जीवन निर्वाह की उत्कृष्ट जीवन पद्धति सबदों के माध्यम से दी।
गुरु जाम्भोजी ने अपने जीवनकाल में भारत भ्रमण के दौरान मध्यकालीन हिंदुस्तान के प्रसिद्ध शहरों, राजधानियों, कला केन्द्र, व्यापार केन्द्र, बंदरगाह, गंगा नदी पार नेपाल, भारतीय उपमहाद्वीप के समुद्र के तीनों तट (गुजरात, श्रीलंका, उड़ीसा) सहित अखंड भारत के सिंध प्रांत तक जनजागृति का कार्य किया।
'पुर,पाटण, नागौर, रणथंभोर, गागरोन, सोरठ,गिरनार दिल्ली, मालवा, गुजरात, माडूं, खुरासान, श्रीलंका, ईडर, उज्जैन, सिंध, जगन्नाथपुरी आदि मध्य भारत के ऐतिहासिक केंद्र रहे हैं।'
गुरु जाम्भोजी को विश्व का प्रथम पर्यावरण वैज्ञानिक का दर्जा दिया जाता है। क्योंकि जाम्भोजी ने उस समय ओजोनमंडल, प्रकाश संश्लेषण, प्राकृतिक संतुलन, जैव विविधता आदि को आसान सबदों में समझा दिया था।
गुरु जाम्भोजी और पर्यावरण संरक्षण
जाम्भोजी ने स्वास्थ्य संबंधी हिदायत के रुप में दैनिक जीवन में शाकाहारी भोजन, शुद्ध पानी,दूध आदि खाद्य पदार्थ का उपयोग, नित्य स्नान आदि का प्रयोग करने की आवश्यकता बताई।
मानव स्वास्थ्य और गुरु जाम्भोजी
जाम्भोजी ने हरे वृक्षों को न काटने की बात और पशुवध न करने की बात नियमों में शामिल की।
जाम्भोजी के अनुयायी बिश्नोई पंथ में फाल्गुन अमावस्या के दिन का विशेष महत्व है। समस्त बिश्नोईज्म को फाल्गुन अमावस्या की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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